श्रील प्रभुपाद वृन्दावन परिक्रमा, Srila Prabhupada Vrindavan Parikrama

श्रील प्रभुपाद भक्तों के संग वृन्दावन परिक्रमा करते हुए

 

…. जब तक कोई कृष्णलोक का वासी न हो वह गुरु नहीं हो सकता। यह पूर्व अपेक्षित है । कोई भी साधारण व्यक्ति गुरु नहीं हो सकता और अगर वो बन भी जाये तो बस उपद्रव ही मचायेगा । और मुक्त पुरुष कौन है? जो कृष्ण को जानता है। यह भगवद-गीता के चौथे अध्याय में वर्णित है कि जो कृष्ण को तत्त्व से जान जाता है वो त्वरित मुक्त हो जाता है और शरीर त्यागने के बाद बिना किसी देरी के कृष्ण के पास ही जाता है ।
इसका अर्थ है कि वह कृष्णलोक का वासी बन जाता है। जैसे ही कोई मुक्त होता है वह कृष्णलोक का वासी बन जाता है और वही तत्त्ववेत्ता गुरु बन सकता है । यही भगवान श्री चैतन्य का कथन है। तो संक्षेप में प्रामाणिक गुरु कृष्णलोक के निवासी होते हैं ।

(मुकुंद को पत्र, १० जून १९६९)