यथा कांचनताम याति
कांस्यम् रस-विधानतः ।
तथा दीक्षा-विधानेन
द्विजत्वम् जायते नृणाम् ॥
“जिस प्रकार कांस्य-धातु को पारे के साथ प्रशोधन करके स्वर्ण में परिवर्तित किया जा सकता है, उसी प्रकार एक निम्नकुल में जन्मे व्यक्ति को वैष्णव-क्रियाओं में दीक्षित करके ब्राह्मण बनाया जा सकता है । ” – हरिभक्ति-विलास
अंतराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ, म्लेच्छों एवं यवनों को मांस-भक्षण, नशे, अवैध-संग और जुए से रोककर एवं उचित ढंग से दीक्षित करके उन्हें वास्तविक ब्राह्मणों में परिवर्तित करने का प्रयास कर रहा है । जैसे कि श्रील सनातन गोस्वामी बताते हैं, जो भी पापकर्म के इन चार सिद्धांतों को समाप्त करता है और हरे कृष्ण महामंत्र का जप करता है वह निश्चित ही दीक्षा की प्रामाणिक प्रक्रिया से एक शुद्ध ब्राह्मण बन सकता है ।
– श्रीमद भागवतम ५.२४.१७ (तात्पर्य)
सामान्यतः दीक्षा, प्रामाणिक गुरु पर निर्भर होती है जो शिष्य को निर्देशित करते हैं । यदि वे देखते हैं कि शिष्य जप की प्रक्रिया से सुयोग्य एवं शुद्ध बन गया है तो वे उसे जनेऊ (ब्राह्मण-दीक्षा) प्रदान करते हैं ताकि वह शत-प्रतिशत ब्राह्मण के सदृश जाना जाये ।
– श्रीमद भागवतम ३.३३.६ (तात्पर्य)
ISKCON Desire Tree – हिंदी
hindi.iskcondesiretree.com
facebook.com/IDesireTreeHindi