उत्तर : जी यह यथातथ्य है कि ‘परम सत्य’ एक पुरुष हैं, परन्तु कठोपनिषद के इस श्लोक “नित्यो नित्यनाम्” का यह अर्थ है कि भगवान् श्री कृष्ण एवं जीवात्मा (हम सब) नित्य हैं और ब्रह्मवादी या मायावादी मत के विपरीत हम कभी भी उनमे विलीन होकर अपना व्यक्तिगत स्वरुप नहीं खोते ।
(कठोपनिषद २.२.१३)
नित्यो नित्यनाम चेतनस चेतनानाम
एको बहुनाम् यो विदधाति कामान
“परम भगवान् नित्य हैं तथा जीव भी नित्य है । परम भगवान् सर्वज्ञ हैं तथा जीव भी सर्वज्ञ है । अंतर यह है कि परम भगवान् कई जीवों के दैनिक आवश्यकताओं की आपूर्ति करते हैं।”
अतः एक शाश्वत परम (भगवान् कृष्ण) हैं जो अन्य अधीनस्थ शाश्वत (जीवों) के आवश्यकताओं की आपूर्ति करते हैं ।
इस श्लोक से हम यह भलीभाँति यह जान सकते हैं कि हमारी और परम पुरुष भगवान् की नित्यता अनन्त काल से चली आ रही है और सनातन है ।
धन्यवाद ! हरे कृष्ण !