२८ फ़रवरी, १९७२ को श्रील प्रभुपाद एवं एक मेहमान के मध्य हुए वार्तालाप का अंश :

 

indian_marriageकिन्तु लोग धीरे धीरे मानव समाज से पशुसमाज को ओरअधोगमन कर रहे हैं । वे विवाह को विस्मृत कर रहे हैं । शास्रो में इसकी भी भविष्यवाणी की गई है ।

दाम्यत्ये: अभिरुचिरहेतु: कलियुग (कलह के वर्तमान युग) में अन्तत: विवाह सम्पन्न नहीं होगे, लड़का व लड़की मात्र साथ साथ रहना स्वीकार करेंगे तथा उनके सम्बन्ध का अस्तित्व यौन-शक्ति पर आधारित होगा । यदि पुरुष अथवा स्त्री के यौन-जीवन में कमी है तब विवाह-विच्छेद (तलाक) होता है ।

इस दर्शन पर फ्रायड तथा अनेको पाश्चात्य दार्शनिकों ने कई पुस्तकें लिखी हैं । किन्तु वैदिक सभ्यता के अनुसार सन्तानोत्पत्ति के लिए ही हमारी संभोग में रुचि होनी चाहिए, यौनजीवन के मनोविज्ञान का अध्ययन करने के लिए नहीं । इसके लिए प्राकृतिक मनोविज्ञान पहले से ही है । यदि व्यक्ति कोई भी दर्शन नहीं पढ़ता है, तब भी इन के प्रति उसका सहज झुकाव जाता है । किसी को भी विद्यालयों तथा कॉलेजों में इसकी शिक्षा नहीं दी जाती है । यह कैसे करना है यह सबको पहले से ही ज्ञात होता है । (हँसते है) यह सामान्य प्रवृत्ति है । किन्तु इसे रोकने के लिए शिक्षा दी जानी चाहिए। यह वास्तविक शिक्षा है ।

बॉब : आजकल, अमरीका में, यह एक मौलिक धारणा है ।

श्रील प्रभुपाद : अमरीका में ऐसी अनेकों वस्तुएँ हैं जिनमें सुधार की आवश्यकता है तथा यह कृष्णभावनामृत आन्दोलन इन में सुधार करेगा । मैं आपके देश गया था; वहाँ मैने देखा कि लड़के- लडकियों मित्रों के समान रह रहे थे । अत: मैंने अपने अनुयायिओं से कहा, “तुम मित्रों की भांति साथ-साथ नहीं रह सकते; तुम्हें विवाह करना चाहिए । ”

बॉब : अनेक लोग देखते हैं कि विवाह भी पावन नहीं है; अतएव उन्हें विवाह करने की इच्छा नहीं होती है । क्योंकि लोग विवाह करते हैं तथा यदि उचित सामंजस्य नहीं होता है, तो वे अत्यन्त सरलता से विवाह-विच्छेद-(तलाक) कर लेते हैं ।

श्रील प्रभुपाद : हाँ, यह भी है ।

बॉब: कुछ लोगों को प्रतीत होता है कि विवाह करने का कोई अर्थ नहीं है ।

श्रील प्रभुपाद : नहीं, उनकी धारणा है कि विवाह वैधानिक वेश्यावृत्ति के लिए है । वे ऐसा सोचते हैं किन्तु यह विवाह नहीं है । उस ईसाई समाचार पत्र ने भी. . .क्या है वह? वॉच. . . ?

symbol-of-marriageश्यामसुन्दर : वॉचटॉवर?
श्रील प्रभुपाद : वॉचटॉवर । उसमें आलोचना की है कि एक पादरी ने दो पुरुषों के मध्य विवाह की अनुमति दी है-समलैंगिक मैथुन । इस प्रकार को अनेक बाते हो रहीं हैं । वे इसे (विवाह को) केवल वेश्यावृत्ति के लिए ही मानते हैं, बात यही है । अतएव लोग सोचते हैं । “इतना अधिक व्यय करके एक नियमित वेश्या रखने से क्या लाभ ? इसका न होना ही श्रेष्ठ है ।”

श्यामसुन्दर : आप गाय तथा बाजार के उस दृष्टान्त का उपयोग करते हैं ।

श्रील प्रभुपाद : हाँ, जब बाजार में दूध उपलब्ध है तब गाय रखने का क्या उपयोग ? ( सब लोग हंसते हैं) पाश्चात्य देशो में यह एक अत्यन्त निन्दनीय स्थिति है । मैंने इसे देखा है । यहाँ भारत में भी धीरे-धीरे यह प्रथा आ रही है । अतएव लोगों को आध्यात्मिक जीवन के आवश्यक सिद्धान्तो में शिक्षित करने के लिए हमने इस कृष्णभावनामृत आन्दोलन को प्रारम्भ किया है । यह एक साम्प्रदायिक धार्मिक आन्दोलन नहीं है । सब के लाभ के लिए यह एक सांस्कृतिक आन्दोलन है|

 

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