
हिरण्यकशिपु की अमरत्व के लिए तपस्या
श्री नृसिंह लीला चिंतन
हिरण्य का अर्थ है सोना तथा कशिपु का अर्थ है मुलायम बिस्तर । ये धूर्त महाशय हिरण्यकशिपु धन तथा स्त्री, इन्ही दोनों वस्तुओं में रूचि रखते थे और अमर होकर इन्हीं का भोग करना चाहते थे । अमर होने की इच्छापूर्ति के लिए उसने अप्रत्यक्ष रूप से ब्रह्माजी से कई वर मांगे । चूँकि ब्रह्माजी ने उससे कह दिया कि वे उसे अमरता का वरदान नहीं दे सकते, अतएव हिरण्यकशिपु ने उनसे प्रार्थना की कि मैं किसी मनुष्य, पशु, देवता या ८४ लाख योनियों के अंतर्गत किसी भी जीव द्वारा न मारा जाऊँ । उसने यह प्रार्थना की कि मैं न तो पृथ्वी पर, न जल में, न ही किसी हथियार से मरुँ । इस प्रकार मूर्खतावश हिरण्यकशिपु ने सोचा कि इन प्रबंधों द्वारा वह मृत्यु से बच जायेगा । किन्तु ब्रह्मा ब्रह्मा द्वारा ये सारे वरदान दिए जाने पर भी अंततोगत्वा भगवान् ने नृसिंह रूप में उसका वध कर दिया ।
उन्होंने उसे मारने के लिए किसी भी हथियार का उपयोग नहीं किया, केवल अपने नाखूनों से उसे मार दिया । उसकी मृत्यु न तो पृथवी पर हुयी, न वायु में, न जल में क्योंकि वह अपनी कल्पना से परे, अद्भुत पुरुष भगवान् नृसिंह की गोद में मारा गया ।
कुल मिलाकर इसका सार यह है कि हिरण्यकशिपु जैसा अत्यन्त शक्तिशाली भौतिकवादी भी अपनी विविध योजनाओं से मृत्यु के लिए अपवाद नहीं बन सका । तो फिर आज के क्षुद्र हिरण्यकशिपु, जिनकी योजनाएं प्रतिक्षण विफल होती रहती हैं, भला क्या कर सकते हैं ।
ईशोपनिषद जीवनसंघर्ष को जीतने के लिए एकचित्त प्रयास न करने की शिक्षा देता है ।
प्रत्येक व्यक्ति अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कठोर संघर्ष कर रहा है किन्तु प्रकृति के नियम इतने कड़े एवं सटीक हैं कि वे किसी को उनका उल्लंघन नहीं करने देते । स्थायी जीवन प्राप्त करने के लिए मनुष्य को भगवद्धाम जाने के लिए तैयार रहना चाहिए ।
– श्री ईशोपनिषद, मन्त्र ११ (तात्पर्य)

भगवान नृसिंह हिरण्यकशिपु की योजनाओं को विफल करते हैं
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