हमारे पडोसी देश पाकिस्तान के कराँची शहर में ९ अगस्त, २०१५ को एक “अपने आप में ख़ास” तरह का आयोजन हुआ । इस्कॉन पाकिस्तान द्वारा कराँची के स्वामिनारायण परिसर में पाकिस्तान की पहली रथयात्रा हुयी ।
यह इस्कॉन पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार हुआ और वहां के हिन्दू श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना । हम वहां के भक्तों को शत शत नमन करते हैं जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी श्रील प्रभुपाद के आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए हरिनाम का प्रचार कर रहे हैं । आइये जानते हैं की पाकिस्तान में हरे कृष्ण आंदोलन कैसे प्रारम्भ हुआ ।
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१९७१ में श्रील प्रभुपाद भारत में बहुत सारे सार्वजानिक कार्यक्रम कर रहे थे । एक शाम किसी कार्यक्रम में एक आर्यसमाजी ने चुनौतीपूर्ण स्वर में श्रील प्रभुपाद से कहा, “आप अपने विदेशी चेलों के साथ यहाँ क्यों आये हो। हमें कृष्ण के बारे में सब पता है । यह हमारी संस्कृति में है। अच्छी बात है आप पाश्चत्य देशों में गए परन्तु मुस्लिम देशों में भी जाइये । पाकिस्तान के बारे में आपका क्या ख्याल है?”
वहां बड़े से पंडाल में हज़ारों लोगो के बीच उसने कहा, “आपको पाकिस्तान जाकर प्रचार करना चाहिए। वहां भक्त बनाइये ।”
श्रील प्रभुपाद ने कहा, “क्या आप मुझे चुनौती दे रहे हैं?”
उस व्यक्ति ने कहा, “हाँ मैं आपको चुनौती देता हूँ कि आप पाकिस्तान जाकर प्रचार कीजिये ।” श्रील प्रभुपाद ने कहा, “ठीक है हम जायेंगे ।”
श्रील प्रभुपाद नेमुझे एक पत्र लिख कर कहा कि तुरंत पश्चिमी पाकिस्तान जाओ। एक और पत्र गर्गमुनि को लिख कर कहा कि तुम पूर्वी पाकिस्तान जाओ। पत्र प्राप्त होने के अगले ही दिन हम निकल पड़े । मेरे पास पैसे नहीं थे । किसीने मुझे फ्लोरिडा से न्यूयॉर्क तक बस के पैसे दिए उसके बाद किसी तरह कभी बस, कभी ट्रेनों मेंकठिन यात्रा करते हुए मैं किसी तरह भारत के रास्ते पाकिस्तान में घुस रहा था । गर्गमुनि के पास पैसे थे तो वे हवाईजहाज से पाकिस्तान पहुँच गए।
भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध के बदल मंडरा रहे थे । युद्ध में पहले ही हानि हो चुकी थी । श्रील प्रभुपाद को इसका पता चलते ही तुरंत हमें एक और पत्र लिखा “मुझे नहीं लगता कि तुम्हे अभी जाना चाहिए”, जो हमें कभी मिला ही नहीं, क्योंकि हम पहले ही निकल चुके थे । हम सीधा युद्ध के बीच में पाकिस्तान पहुंचे। हम किसी तरह प्रचार करने का प्रयास कर रहे थे । मैं करांची में था । करांची के उत्तर में सिंह मरुस्थल है, यह सबसे गर्म जगह है जहाँ तापमान ५१ डिग्री तक जाता है ।मई का महीना था, बहुत गर्मी पड़ रही थी और मैं दस्त, उल्टियों से त्रस्त हो गया था ।
हमारे पास पुस्तकें नहीं थी । लोग हमपर थूकते थे, कभी कोई पीठ में छुरा टिका देता था और थूक कर चला जाता था । हमने सड़कों पर कीर्तन करने का भी प्रयत्न किया परन्तु कुछ लोग आकर हमारे तिलक पोंछकर और हमपर थूक कर चले गए । परिस्थितियाँ बहुत प्रतिकूल थीं ।
फिर एक दिन पाकिस्तान और भारत के समाचार पत्रों में छपा, “चार हरे कृष्ण मिशनरीयों की हत्या।” बम्बई में करणधार ने श्रील प्रभुपाद को वह समाचार पत्र दिखाया । उसमे कोई नाम नहीं लिखे थे ।
गर्गमुनि पूर्वी पाकिस्तान में पुष्टकृष्ण के साथ था और मैं जगन्निवास के साथ पश्चिम में था । हम चार थे, श्रील प्रभुपाद बहुत व्याकुल हो गए। उन्हें लगा हम मारे गए हैं ।
मैंने श्रील प्रभुपाद को एक टेलीग्राम भेजा, “क्या मैं वापस आ जाऊँ?”
श्रील प्रभुपाद का उत्तर आया, “तुरंत आओ, भक्तिवेदांत स्वामी” । इन चार शब्दों ने हमें बहुत सुकून दिया । इस समय देश से निकलना बहुत कठिन था परन्तु हम किसी न किसी तरह वहां से निकले । मैं सीधा मुंबई आकर आकाश गंगा बिल्डिंग, जिसमे श्रील प्रभुपाद रुके थे, वहां गया ।
जैसे ही मैं कमरे में घुसा, श्रील प्रभुपाद तेज़ी से उठकर आये और दोनों बाहों में जकड़कर मुझे अपनी छाती से लगा लिया । फिर वो मेरे सारे शरीर पर हाथ फेर कर देखने लगे जैसे एक माँ अपने बच्चे को देखती है कि उसे कहीं कोई चोट तो नहीं लगी है । माँ हमेशा अपने बच्चे को सुरक्षित देखना चाहती है ।
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I am very very happy to read this news and I am proud of prabhupad’ devotees whose performed jagannath rathyatra in Pakistan. Hare krishna