श्रील प्रभुपाद – इस्कॉन के संस्थापकाचार्य

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 Back to Godhead - Volume 12, Number 10 - 1977  Srila Prabupada translating

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Srila Prabhupada_initiation2 Back to Godhead - Volume 10, Number 02 - 1975

 

 

 

 

१९६५ में ७० वर्षीय ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद ने कृष्णभावनामृत के इस सनातन सांस्कृतिक ज्ञान का वितरण करने के लिए भारत से अमेरिका की ३७ दिवसीय कठिन समुद्री यात्रा की थी । अकेले संघर्ष करते हुए उन्होंने एक विश्व-समुदाय, अंतराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (ISKCON) की स्थापना की जिसमे आज विश्व के अधिकतर बड़े शहरों, नगरों एवं गाँवों में कुल ६०० मंदिर, कृषि समुदाय और गुरुकुल एवं ३० लाख से अधिक नियमित अनुयायी हैं । इसी समुदाय को हरे कृष्ण आंदोलन के नाम से जाना जाता है ।

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श्रील प्रभुपाद ने कृष्णभावनामृत पर ८० से अधिक पुस्तकें लिखीं जो आज ६५ से अधिक भाषाओँ में उपलब्ध हैं । इन पुस्तकों में श्रीमद्-भगवद्गीता-यथारूप, श्रीमद् भागवतम् एवं श्री चैतन्य चरितामृत मुख्य ग्रन्थ हैं । इन ग्रंथो को आज विश्व के अनेकों विश्वविद्यालयों में दर्शन-शास्त्र की पाठ्यक्रम पुस्तकों के रूप में पढ़ाया जाता है । श्रीमद्-भगवद्गीता-यथारूप विश्व की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली प्रामाणिक गीताओं में से है ।

१९७७ में देह-त्यागने से पूर्व, इस संस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए उन्होंने अपने वरिष्ठ शिष्यों के समावेश से “नियमन समिति आयोग” या “गवर्निंग बॉडी कमीशन” (GBC) का गठन किया । उनके अप्रकट होने के उपरांत उनके शिष्य अब आदि काल से चली आ रही गुरु-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं ।
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 इस प्रकार गुरु-शिष्य परंपरा में श्रील प्रभुपाद के द्वारा ग्रहण और फिर प्रदान किया हुआ ज्ञान अब यह संस्था व्यवस्थित तरीके से समस्त विश्व में वितरित कर रही है । यह संस्था ब्रह्म-मध्व-गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय का ही अंश है, जो भगवान कृष्ण से आरम्भ होकर भौतिक सृष्टि के प्रथम जीव ब्रह्मा से होते हुए मध्वाचार्य एवं श्री गौरांग महाप्रभु द्वारा प्रसारित होकर श्रील प्रभुपाद तक पहुंची है ।
अधिक जानकारी के लिए निकट के इस्कॉन मदिर में आपका स्वागत है ।
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