१९६५ में ७० वर्षीय ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद ने कृष्णभावनामृत के इस सनातन सांस्कृतिक ज्ञान का वितरण करने के लिए भारत से अमेरिका की ३७ दिवसीय कठिन समुद्री यात्रा की थी । अकेले संघर्ष करते हुए उन्होंने एक विश्व-समुदाय, अंतराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (ISKCON) की स्थापना की जिसमे आज विश्व के अधिकतर बड़े शहरों, नगरों एवं गाँवों में कुल ६०० मंदिर, कृषि समुदाय और गुरुकुल एवं ३० लाख से अधिक नियमित अनुयायी हैं । इसी समुदाय को हरे कृष्ण आंदोलन के नाम से जाना जाता है ।
श्रील प्रभुपाद ने कृष्णभावनामृत पर ८० से अधिक पुस्तकें लिखीं जो आज ६५ से अधिक भाषाओँ में उपलब्ध हैं । इन पुस्तकों में श्रीमद्-भगवद्गीता-यथारूप, श्रीमद् भागवतम् एवं श्री चैतन्य चरितामृत मुख्य ग्रन्थ हैं । इन ग्रंथो को आज विश्व के अनेकों विश्वविद्यालयों में दर्शन-शास्त्र की पाठ्यक्रम पुस्तकों के रूप में पढ़ाया जाता है । श्रीमद्-भगवद्गीता-यथारूप विश्व की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली प्रामाणिक गीताओं में से है ।

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