
श्रील माधवेंद्र पुरी
श्रील माधवेंद्र पुरी
श्री चैतन्य महाप्रभु के अवतरण से पहले उनके नित्य पार्षद श्री अद्वैत आचार्य, श्री जगन्नाथ मिश्र, शची माता, माधवेंद्र पुरी एवं ईश्वर पुरी इस धरा-धाम पर आ चुके थे ।
श्रील माधवेंद्र पुरी ने मध्वाचार्य सम्प्रदाय के गुरु श्रील लक्ष्मीपति तीर्थ से दीक्षा ग्रहण की थी । उनके अनेकों शिष्यों में से श्रील अद्वैत आचार्य एवं श्रील ईश्वरपुरी प्रमुख थे । जगन्नाथ पुरी और बंगाल में उनके कई शिष्य थे जो बाद में श्री चैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आंदोलन में भाग लेने के लिए उनसे जुड़े ।
भारतभूमि पर व्यापक तीर्थ भ्रमण करने के पश्चात वे अंततः वृंदावन में रहे और रूप एवं सनातन गोस्वामी के आगमन के पहले से वृंदावन की लुप्त तीर्थ स्थलियों का सर्वेक्षण कर रहे थे ।
एक बार श्री गोपाल जी ने उनके स्वप्न में आकर गोवर्धन पर्वत में उनके दबे होने कि बात कही और गोवर्धन पर ही एक मंदिर बनाकर उसमे उन्हें स्थापित करने का निर्देश दिया । श्रील माधवेंद्र पुरी ने गोपाल जी को स्थापित करके अन्नकूट महोत्सव या गोवर्धन पूजा का आयोजन प्रारम्भ किया था । यह उत्सव अब सम्पूर्ण विश्व में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । श्री गोपाल जी के मूल विग्रह अब श्रीनाथ जी नाम से नाथद्वारा (राजस्थान) में पूजे जाते हैं ।
श्रील माधवेंद्र पुरी ने ही मध्व सम्प्रदाय में माधुर्य भाव का सूत्रपात किया । उन्होंने ही प्रेम-भक्ति का बीज बोया और उस बीज से श्री चैतन्य महाप्रभु वृक्ष बनकर हम सभी को प्रेम भक्ति के मधुर फल बाँट रहे हैं । उस वृक्ष की शाखाएं अब मध्व-गौड़ीय संप्रदाय कहलाती हैं ।
महाप्रभु का विरह भाव श्रील माधवेंद्र पुरी के एक ही श्लोक के उच्चारण से उत्पन्न हुआ था ।
अई दिन दयाद्र नाथ हे मथुरानाथ कदावलोक्यसे…
हे कृपालु दीनानाथ ! हे मथुरानाथ ! मैं कब आपके दर्शन पाउँगा ? आपके दर्शन बिना मेरा हृदय विदीर्ण हुआ जा रहा है । हे मेरे प्रियतम, मैं भाव-विभोर हुआ जा रहा हूँ । बताइए मैं अब क्या करूँ ?
– चै च मध्य ४.१९७
श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामी इस श्लोक उपमा कौस्तुभ मणि से करते हैं । यह श्लोक स्वयं श्रीमती राधारानी के श्रीमुख से गाया गया था जब वे श्री कृष्ण का मथुरा से पुनरागमन की प्रतीक्षा कर रही थी । और राधारानी की कृपा से यह श्लोक श्रील माधवेंद्र पुरी के श्रीमुख से निकला ।
यह श्लोक विरह की पराकाष्ठा को दर्शाता है और श्रील माधवेंद्र पुरी के अनुसार भक्तों को कृष्ण प्रेम की प्राप्ति के प्रति आकृष्ट करता है ।
श्रील माधवेंद्र पुरी की समाधी रेमुना (ओडिशा) में क्षीर-चोर गोपीनाथ मंदिर के निकट ही है ।
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