धर्म-परिवर्तन क्यों हो रहा है और कैसे रोक जा सकता है ?

मदर टेरेसा को संत की उपाधि मिलते ही धर्म-परिवर्तन के विषय में चर्चा ज़ोरों पर है । यह बहुत ही दुखद तथ्य है कि अधिकतर धर्म या पंथ बाहरी दिखावे पर ही टिके हुए हैं । वह भी कट्टर धर्म-प्रचारकों की इस कल्पना पर कि भगवान केवल उनके ही हैं और भगवान की कृपा केवल वे ही लोग बाँट रहे हैं । अक्सर इस बाहरी दिखावे वाली धार्मिक अनुभूति के कारण, उन्हें अपनी भक्ति से अधिक इस बात में सफलता और सुरक्षा का एहसास होता है कि हमने कितने लोगों को अपने पंथ से जोड़ दिया, जो कि एकमात्र सच्चा पंथ है । इस कारण वे लोगों...

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क्या मंदिरों के बड़े अनुष्ठानों में इतना धन व्यय करने से बेहतर नहीं होगा कि हम भूखे लोगों को भोजन कराएं ?

जी हाँ, किसी को भूख से पीड़ित देखना बहुत दुखदायी होता है । आध्यात्मिकता द्वारा हम में दया भाव का विकास होता है । यदि यह समाज भौतिकता के प्रति कम और आध्यात्मिकता के प्रति अधिक झुकाव रखेगा तो, सामान्यजन और राजकीय अधिकारियों में भी यह दयाभाव होने के कारण सभी अधिक से अधिक दान-पुण्य करेंगे । और साथ ही साथ भगवान के मंदिरों में उनकी वैभवशाली पूजा भी होगी । निर्धन एवं अभावग्रस्त लोगों का निश्चित ही ध्यान रखना चाहिए परन्तु क्या उनकी देखभाल और मंदिरों में वैभवपूर्ण पूजा-अर्चना परस्पर दो भिन्न विषय नहीं हैं ? क्या भगवान की पूजा वास्तव में निर्धन लोगों...

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क्या आपको आत्मा और शरीर के बीच अंतर पता है ?

इस लेख में आपको आत्मा तथा शरीर के बीच का अंतर ज्ञात होगा । यह ज्ञान हमारे आध्यात्मिक ज्ञान का मूल है । कभी कभी लोग यह बोल देते हैं कि हम भी अध्यात्म से जुड़े हैं या किसी न किसी आध्यात्मिक मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं । परन्तु अधिकतर लोगों में अभी भी यह मूलभूत ज्ञान नदारद है कि अध्यात्म का आधार ही यह है कि, “हम यह शरीर नहीं आत्मा हैं ।” इस विषय के अतिरिक्त आपको यह ज्ञात होगा की पापकर्म के फल किस प्रकार कार्यान्वित होते हैं । और कैसे इन दुर्गम फलों से...

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भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु में क्या अंतर है ?

                भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु के मध्य अंतर को सरल भाषा में इस उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है । कोई उच्च पद पर आसीन व्यक्ति यदि अपने कार्यालय में जाता है तो उसे सभी आदर-सत्कारपूर्ण व्यव्हार करते हैं । और जब वही व्यक्ति घर जाता है तो उसके निकटतम परिवारजन उसके साथ साधारण व्यक्ति जैसा व्यवहार करते हैं । यहाँ तक की वह व्यक्ति अपने पुत्र या पौत्र को कंधे पर बैठाकर घुमाता है । घरेलु सम्बन्ध , कार्यालय के सम्बन्ध की तुलना में अंतरंग होता है । जैसे व्यक्ति...

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मैं कृष्ण की ही पूजा क्यों करूँ ?

सारा वैदिक साहित्य स्वीकार करता है कि कृष्ण ही ब्रह्मा, शिव तथा अन्य समस्त देवताओं के स्त्रोत हैं | अथर्ववेद में (गोपालतापनी उपनिषद् १.२४) कहा गया है – यो ब्रह्माणं विदधाति पूर्वं यो वै वेदांश्च गापयति स्म कृष्णः – प्रारम्भ में कृष्ण ने ब्रह्मा को वेदों का ज्ञान प्रदान किया और उन्होंने भूतकाल में वैदिक ज्ञान का प्रचार किया | पुनः नारायण उपनिषद् में (१) कहा गे है – अथ पुरुषो ह वै नारायणोSकामयत प्रजाः सृजेयते – तब भगवान् ने जीवों की सृष्टि करनी चाही | उपनिषद् में आगे भी कहा गया है – नारायणाद् ब्रह्मा जायते नारायणाद् प्रजापतिः...

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क्या भगवान पक्षपात करते हैं ?

जब कृष्ण का सबों के लिए समभाव है और उनका कोई विशिष्ट मित्र नहीं है तो फिर वे उन भक्तों में विशेष रूचि क्यों लेते हैं, जो उनकी दिव्यसेवा में सदैव लगे रहते हैं? किन्तु यह भेदभाव नहीं है, यह तो सहज है | इस जगत् में हो सकता है कि कोई व्यक्ति अत्यन्त उपकारी हो, किन्तु तो भी वह अपनी सन्तानों में विशेष रूचि लेता है | भगवान् का कहना है कि प्रत्येक जीव, चाहे वह जिस योनी का हो, उनका पुत्र है, अतः वे हर एक को जीवन की आवश्यक वस्तुएँ प्रदान करते हैं | वे उस...

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धैर्य और उत्साह – हमारी सफलता की कुंजी

हमें धैर्य एवं उत्साहपूर्वक भक्ति करनी चाहिए । उत्साहात् निश्चयात् धैर्यात् तत्-तत् कर्म प्रवर्तनात् (श्री उपदेशामृत श्लोक -३) । हमें उत्साही होना चाहिए कि, “मुझे स्वयं को कृष्ण भावनामृत आंदोलन में में पूर्णतया रत करना है ।” उत्साह, यह प्रथम योग्यता है । सुस्ती आपकी कोई सहायता नहीं करेगी । आपको बहुत उत्साही होना होगा । मेरे गुरु महाराज कहा करते थे, “प्राण आछे यांर सेइ हेतु प्रचार ।” वह व्यक्ति प्रचार कर सकता है जिसमे प्राण हैं । एक मृत व्यक्ति ही प्रचारक नहीं बन सकता । आपको उत्साही होना चाहिए कि, “मुझे अपनी श्रेष्टतम सामर्थ्य से भगवान् कृष्ण की महिमाओं का प्रचार करना है ।”  ऐसा नहीं...

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