श्रीमद् भगवद्गीता – प्रवचन                            हैदराबाद, अप्रैल २८, १९७४ 

हरि हरि! विफले जनम गोंवाइनु। मनुष्य जनम पाइया, राधाकृष्ण ना भजिया, जानिया सुनिया विष खाइनु।। गोलोकेर प्रेमधन, हरिनाम संकीर्तन।

हरि हरि! विफले जनम गोंवाइनु। मनुष्य जनम पाइया, राधाकृष्ण ना भजिया, जानिया सुनिया विष खाइनु।। गोलोकेर प्रेमधन, हरिनाम संकीर्तन।

यह हरे कृष्ण आंदोलन इस भौतिक जगत का आंदोलन नहीँ है। यह हरे कृष्ण मंत्र भी इस भौतिक जगत की ध्वनि नहीँ है। श्रील नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा रचित एक गीत है “गोलोकेर प्रेमधन हरिनाम संकीर्तन”।
जिस प्रकार से कोई ध्वनि इस संसार मेँ हम यूरोप या अमेरिका से प्राप्त करते हैं। उसी प्रकार हरिनाम संकीर्तन भी आध्यात्मिक जगत से आई हुई है।
तो यह ध्वनि कोई भारतीय, अमेरिकन या यूरोपियन ध्वनि नहीँ है। हमेँ इस ध्वनि को सिर्फ पकड़ना है और उसके लिए हमारे पास एक यंत्र होना चाहिए और वो यंत्र हमारे अंदर ही स्थित है, हमारा हृदय ही वह यन्त्र है जिससे हम आध्यात्मिक संदेश प्राप्त कर सकते हैं इसलिए क्यूंकि हमारे हृदय मेँ नारायण स्वयं विराजमान हैं – इश्वरः सर्व भूतनाम हृद्देशे… यहाँ पर स्पषट रुप से उल्लिखित हृद्देशे।
इसलिए क्यूंकि नारायण या ईश्वर हमारे हृदय मेँ ही विराजमान हैं हमेँ कहीँ भी बाहर जाकर उनकी खोज नहीँ करनी है।

क्यूंकि शास्त्र ही कहते हैं कि वे हमारे हृदय मेँ विराजमान हैं, इसलिए योगीजन अपने ह्रदय मेँ ही नारायण का ध्यान करते हैं। ध्यानावस्थित तद्गतेना मनसा यम पश्यंति योगिनो… योग क्रिया मतलब श्री नारायण को अपने हृदय मेँ देखना।
उसी तरह जैसे हम उन्हें देखते हैं वैसे ही हम उन्हे सुन भी सकते हैं।
नामचिंतामणि कृष्णस् चैतन्य रस विग्रहः।
रस विग्रह मतलब कृष्ण या रामादि नाम का आध्यात्मिक परमानंद स्वरुप। यह स्वरुप कानों द्वारा प्राप्त किया जाता है और यह हमारे हृदय तक जाता है। इस तरह से हम नारायण का अनुभव हरे कृष्ण महामंत्र द्वारा भी कर सकते हैं।
बस शास्त्रों एवँ गुरु की निगरानी मेँ थोड़े अभ्यास की आवश्यकता है। तब हम समझ भी सकते हैं एवं दर्शन भी कर सकते हैं।