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यह वृतांत यूरोप में बुडापेस्ट शहर का है । मैं पार्किंग-स्थल में पुस्तक-वितरण करते हुए एक ४०-४५ वर्षीय महिला से मिला । उसने मुझे सकारात्मक दृष्टि से देखा तो मैंने उसे “पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण” पुस्तक देना चाहा, परन्तु उसने मना कर दिया और साथ ही यह बताने लगी की वह क्यों नहीं ले सकती ।

उसने कहा, “जब मैं सत्रह वर्ष की थी तब मैंने भगवद-गीता पढ़ी थी और पढ़ते-पढ़ते मैं खूब रोई क्योंकि मुझे वह मिल गया था जो मैं हमेशा से ढूंढ रही थी । मुझे भगवान कृष्ण की उपस्थिति का अनुभव हुआ ।

उसने आगे कहा, “जब मैं छोटी बच्ची थी तभी मुझे यह लगने लगा था कि यह संसार मेरा घर नहीं है । मैंने कई बार यह बात अपने माता-पिता से भी कही; ‘आप लोग मेरे माता-पिता नहीं हैं, मुझे अपने घर जाना है ।’

“पिछले पंद्रह वर्षों से मैंने अपने पति और बच्चों के साथ एक साधारण सांसारिक जीवन बिताया है, किन्तु हमेशा कृष्ण के आनुगत्य की इच्छा करती रही हूँ । मैं प्रतिदिन ध्यान करती हूँ और भगवद-गीता पढ़ती हूँ फिर भी संसार में सबकुछ नीरस और निरर्थक लगता है । मैं केवल कृष्ण के घर, उनकी संगती में रहना चाहती हूँ । वह मेरे गोपनीय प्रेमी के समान हैं ।”

अंत में उसने वह पुस्तक ले ली और बोली की वह लेना नहीं चाहती थी क्योंकि यदि वह कृष्ण के विषय में और अधिक पढ़ेगी तो उसे और भी रोना आएगा । वैसे भी हमारी बातचीत के दौरान वह वास्तव में कई बार रो चुकी थी ।

उसने यह भी बताया कि वह नियमित रूप से अस्पताल में भर्ती कैंसर के मरीजों से मिलती है और उन्हें इस बात की शिक्षा देती है कि उनके जीवन के ये अंतिम क्षण कैसे सबसे महत्वपूर्ण क्षण हैं ।

वह बोली कि अकेले कृष्ण भावनाभावित जीवनयापन करना अत्यंत कठिन है, और वह इस बात से प्रसन्न है कि मैंने उसे मंदिर आने और अन्य भक्त समुदाय से जुड़ने का आमंत्रण दिया ।

रविवार को वह अपने पति के साथ मंदिर आयी थी और दोनों इस नए अनुभव से बहुत ही प्रसन्न दिखे ।

मैं प्रतिदिन ऐसे कई विशेष जीवात्माओं से मिल रहा हूँ । इस प्रकार के भगवत-करुणा से भरपूर दृष्टान्त मेरे भक्तिमय जीवन को और सुदृढ़ कर रहे हैं । मैं बहुत अनुग्रहित अनुभव करता हूँ ।

आपका दास
मोहन दास

प्रेषक: ISKCON Desire Tree – हिंदी
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** फोटो प्रासंगिक है ।