Tamilnadu ISKCON Padayatra

– आचार्य दास द्वारा 

३१ जुलाई को हमारी पदयात्रा तमिलनाडु, करूर से १० किलोमीटर दूर मनलमेडु गाँव के बाहर रुकी । पास में ही एक वृद्धाश्रम था जहाँ वृद्ध, बीमार एवं अपंग लोग रह रहे थे । हमने सोचा कि वे सब यहाँ नहीं आ सकते इसलिए हम ही उनके पास चलते हैं । हमने वहां पहुंचकर सभी रहिवासियों के लिए कथा और कीर्तन किया जिसमें सभी ने उत्साहपूर्वक भाग लिया ।
जैसे ही हम यह कार्यक्रम समाप्त करके वापस निकले हमने एक व्यक्ति देखा जो एक गाय को खींचकर ले जा रहा था । पीड़ित गाय को देखकर हमें लगा अवश्य यह व्यक्ति इसकी हत्या करने के लिए ले जा रहा होगा । इसलिए हम में से कुछ उसके पीछे पीछे उसके गाँव तक चले गए । वहां उसके घर के पास गोमाँस का ढेर पड़ा था । अब हमें पक्का विश्वास हो गया कि यह व्यक्ति गोहत्यारा ही है । उसके पास रखे गाय काटने वाले धारदार छुरे को देखकर हम घबरा गए थे ।

कभी कभी कुछ लोग जब साधु या भक्तों को देखते हैं तो चिढ़कर, “भाग जाओ’, ‘चले जाओ यहाँ से”  बोलते हैं । परंतु इस कष्टमय स्थिति में हम यह जघन्य कृत्य कैसे अनदेखा कर सकते थे । अचानक उस व्यक्ति ने हमें देखा और चिल्लाकर बोला, “ओ महाराज, इधर आओ । इधर क्या कर रहे हो ? क्या चाहिए आपको ?”

तमिलनाडु के एक पुराने भक्त ने हमें पहले ही यह बताया हुआ था कि कुछ क्षेत्रों में हमें चोर, डाकुओं से सावधान रहना होगा । कुछ जगहों पर तो कीर्तन करने से भी मना करते हैं । इसलिए जब इस व्यक्ति ने हमें पुकारा तो हम सहम गए । हमने श्री श्री निताई गौरसुन्दर को मन ही मन स्मरण किया और उस व्यक्ति के निकट पहुंचे । हमने कहा हम पदयात्री हैं, चार धाम की परिक्रमा कर रहे हैं और भगवान श्री कृष्ण के संदेश का प्रचार कर रISKCON Padayatra Tamil_Naduहे हैं । हमने उसे यह भी बताया कि हम एक बैलगाड़ी पर श्री श्री निताई गौरसुन्दर के साथ यात्रा कर रहे हैं । अंततः साहस जुटाकर हमने उस से पूछा कि क्या हम उसके गाँव में संकीर्तन कर सकते हैं । वह ध्यानपूर्वक हमारी बातें सुन रहा था और बोला, “हाँ हाँ क्यों नहीं, जरूर आ सकते हैं ।” मैंने उस से अनुरोध किया की हम आएंगे परंतु हमारे आने से पहले वह मांस का ढेर साफ़ कर ले । बातों बातों में वह गाय को भूल चुका था और हमारे निकलते ही स्वागत की तैयारियों में लग गया ।

हमारे पहुँचने से पहले ही उस व्यक्ति ने सभी को हमारे आगमन की सूचना दे दी थी । जब हम पहुंचे तो वहां लगभग १५० लोग थे । हमने कीर्तन आरम्भ किया जिसमे सभी ने जमकर भाग लिया । कई लोग नृत्य करने लगे । जब हम उनसे हाथ उठाने को कहते तो सभी हाथ उठाकर जोर से हरे कृष्ण महामन्त्र दोहराते । सभी बालकों के जैसे हमारा कहा मान रहे थे । यह भगवान की अहैतुकी कृपा से कम न था । कीर्तन के बाद सभी गांववासियों ने भगवान के दर्शन किये, जिसके उपरांत कथा प्रारम्भ हुयी । मैंने चैतन्य चरितामृत से एक श्लोक पढ़ा :

कलि काले नाम-रूपे कृष्ण-अवतार

जिसका अर्थ है कि, ” इस कलियुग में भगवान के पवित्र नाम, हरे कृष्ण महामंत्र ही भगवान का अवतार है ।” मैंने उन्हें बताया कि कलियुग में स्वयं भगवान अपने नामों के रूप में अवतरित होते हैं । और वे पवित्र नाम हैं :
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे||

आगे मैंने कहा कि यह हरिनाम आपको इस जीवन में किये गए सारे पापों से मुक्ति दिला सकता है । रामलीला से उदाहरण देते हुए बताया की किस प्रकार पत्थरों पर जब राम नाम लिखा गया तो वो तैरने लगे, उसी प्रकार हम सभी पापकर्मों के कारण पत्थर समान भारी हो गए हैं और यदि हरिनाम लेंगे तो हम भी भवसागर से पार हो जायेंगे । लोग भाव-विभोर होकर कथा सुन रहे थे । मैंने आगे कहा, “आप सभ्य लोग हैं । आप गौ-हत्या कैसे कर सकते हैं ? गोहत्या से बड़ा पापकृत्य और कुछ नहीं है ।” बाद में हमें पता चला था कि यह गाँव हर सप्ताह एक गाय को काटकर खाता था और यह प्रथा कई वर्षो से चल रही थी । किसी को यह नहीं पता था कि ऐसा क्यों किया जा रहा था ।

कथा के उपरांत हमने खिचड़ी प्रसाद बांटा । सामान्यतः लोग प्रसादं बांटते समय भीड़ लगा लेते हैं परंतु आश्चर्यजनक रूप से यहाँ पर सभी ने सुव्यवस्थित ढंग से एक पंक्ति में प्रसाद ग्रहण किया । प्रसाद के बाद कुछ लोगों ने भगवद-गीता ली । हमने सभी को गीता के साथ एक जपमाला भी दी । कुछ महिलाएं आँखों में आँसू लेकर आयीं और हमारे, भगवान के साथ उनके गाँव आने पर आभार जताया ।

जिस व्यक्ति से हम सबसे पहले मिले थे वह भी कार्यक्रम के बाद हमसे मिला । उसने हमारे कार्यक्रम के लिए धन्यवाद दिया । हाथ मिलाकर मैंने उस से कहा, “आप इतने सभ्य पुरुष हैं, आपको गायें नहीं काटनी चाहिए । यदि आप एक गाय काटते हैं तो उसके शरीर में जितने बाल हैं उतनी बार आपको जन्म लेना पड़ेगा ।” वह उस गाँव का मुखिया प्रतीत हो रहा था इसलिए मैंने भगवद-गीता की ‘यद् यद् आचरति श्रेष्ठस’ शिक्षा को ध्यान में रखते हुए उससे अगले दिन मंगल-आरती में आने के लिए कहा ।

अगले दिन तड़के वह २० अन्य लोगों के साथ मंगल-आरती में आया । आरती के बाद उसने प्रण लिया कि वह अब से कभी माँस न काटेगा, न खायेगा । उसने ६ भगवद-गीता ली और हमारे साथ अगले गंतव्य तक साथ भी चला । हमने उसे निरंतर हरिनाम जप करने का आग्रह किया जो उसने स्वीकार भी किया । जाते जाते उसने हमें अपना फोन नंबर दिया और प्रणाम करके वापस चला गया ।

हम श्रील प्रभुपाद और प पु लोकनाथ स्वामी महाराज के आभारी हैं जिनकी प्रेरणा से हम यह पदयात्रा कर रहे हैं । हरिनाम के ऊपर हमारी श्रद्धा और बढ़ गयी क्योंकि आज उनकी ही कृपा से एक गौभक्षक, गौरक्षक बन गया था ।

 

प्रेषक : ISKCON Desire Tree – हिंदी
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