Nityananda charan Nityananda Nityananada

नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं, "यदि आप भगवद्धाम में श्री श्री राधा-कृष्ण के संग के लिए व्याकुल हैं, तो सर्वोत्तम युक्ति यह है कि आप श्री नित्यानद प्रभु का आश्रय लें ।"

वे आगे कहते हैं, "से सम्बन्ध नाही जार, बृथा जन्म गेलो तार : जो श्री नित्यानंद प्रभु के संपर्क में आने से वंचित रहा है उसने अपना बहुमूल्य जीवन ऐसे ही व्यर्थ गँवा दिया है ।" बृथा जन्म गेलो, बृथा अर्थात शून्य, तथा जन्म अर्थात जीवन । गेलो तार अर्थात व्यर्थ । क्योंकि उसने श्री नित्यानंद प्रभु से संबंध नहीं जोड़ा है ।

नित्यानंद, नाम ही सूचक है, नित्य अर्थात शाश्वत, आनंद अर्थात सुख । भौतिक सुख शाश्वत नहीं होता । यही अंतर है । इसलिए जो बुद्धिमान हैं वे इस भौतिक संसार के क्षणिक सुख में रूचि नहीं लेते । जीवात्मा होने के नाते हम सभी सुख की खोज में हैं । परन्तु जो सुख हम खोज रहे हैं वह क्षणिक है, अस्थायी है । यह सुख नहीं है । वास्तविक सुख है नित्यानंद, शाश्वत सुख । अतएव जो नित्यानंद के संपर्क में नहीं है, उसके लिए ऐसा समझना चाहिए कि उसका जीवन व्यर्थ है ।

से सम्बन्ध नाही जार, बृथा जन्म गेलो तार। 
 सेइ पशु बोड़ो दुराचार ॥

नरोत्तम दास ठाकुर बहुत ही कठोर शब्द का प्रयोग करते हैं । वे कहते हैं ऐसा मनुष्य, एक पशु, अनियंत्रित पशु के समान है । जैसे कुछ पशु होते हैं जो वश में नहीं किये जा सकते, तो जो श्री नित्यानदं प्रभु के संपर्क में नहीं आया है उसे जंगली पशु के समान समझना चाहिए । सेई पशु बोड़ो दुराचार ।

क्यों ? क्योंकि निताई ना बोलिलो मुखे : "उसने कभी नित्यानंद प्रभु के पवित्र नामों का उच्चारण नहीं किया है ।" 
आगे, मजिलो संसार-सुखे – और वह भौतिक आनंद में लीन हो गया है । 
"विद्या-कुले की कोरिबे तार – "उस क्षुद्र व्यक्ति को यह नहीं पता कि उसकी शिक्षा, परिवार, संस्कार तथा राष्ट्रीयता क्या सहायता कर पाएंगे ?" ये सब कोई सहायता नहीं कर पाएंगे ? ये सब अनित्य हैं ।

यदि आपको शाश्वत सुख चाहिए तो श्री नित्यानंद प्रभु से सम्बन्ध स्थापित कीजिये ।

प्रेषित: ISKCON Desire Tree – Hindi
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