
दुर्योधन, भगवान कृष्ण का भक्त नहीं था । बाल्यकाल से ही उसने कृष्ण के शुद्ध भक्तों को विभिन्न उपायों से मारने का प्रयास किया । जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण द्वारा पांडव-पक्ष की ओर से शांति-सन्देश भिजवाया तब दुर्योधन ने भगवान कृष्ण का निरादर किया और उन्हें बंदी बनाने का प्रयास किया ।
कैसे :
* बलराम जी ने दुर्योधन के साथ कई वर्ष मिथिला में बिताये और उसे गदायुद्ध की कला का प्रशिक्षण भी दिया । (श्रीमद भागवतम १०.५७.२६)
* बलराम जी अपनी बहिन सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से करना चाहते थे । (श्रीमद भागवतम १०.८६.२-३)
*दुर्योधन, बलराम जी को परम भगवान मानता था । वह उन्हें भगवान कहकर पुकारता था । (गर्ग संहिता ८.९.१ ; ८.१०.१)
* वह दुर्योधन ही था जिसने प्रद्विपक मुनि से व्रज में बलराम जी की रासलीला तथा बलराम जी की पूजा के लिए विविध प्रार्थनाओं एवं क्रियाओं और बलराम जी के सहस्त्रनाम की जानकारी ली थी । (गर्ग संहिता ८.९.१३)
* बलराम जी का एक नाम “दुर्योधन-गुरु” भी है । (गर्ग-संहिता १.१०.४२)
* बलराम जी कुरुक्षेत्र में भीमसेन और दुर्योधन के मध्य होने वाले युद्ध को रोकने गए थे । जब उन्होंने देखा कि यह युद्ध कृष्ण की इच्छा से हो रहा है, तो दोनों भीम और दुर्योधन के प्रति अनुराग होने के कारण वे वहां से चले गए क्योंकि दोनों को लड़ते हुए देखकर उन्हें दुःख होता । (श्रीमद भागवतम १०.७९.२३-३०)
* जब भीम ने दुर्योधन का वध कर दिया, तो बलराम जी क्रोधित होकर वहां से चले गए ।
इस प्रश्न के अनेक उत्तर हो सकते हैं परन्तु हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि यद्यपि ऐसा प्रतीत होता है कि दुर्योधन उनका प्रिय था मगर अंततः उसकी प्रवृत्ति बलराम जी को अप्रिय थी ।
दूसरा, यद्यपि दुर्योधन को बलराम जी के प्रति श्रद्धा थी परन्तु भगवान कृष्ण या पांडवों के प्रति श्रद्धा नहीं थी । उसी प्रकार यदा-कदा हम देखते हैं कि कोई शिष्य अपने गुरु कि सेवा के प्रति अति-उत्साही है परन्तु अन्य वैष्णवों के प्रति अनादर या अपराध करता है । या दुर्योधन के जैसे कुछ शिष्य अपने गुरु के भक्त होते हैं परन्तु भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना या कृष्ण-नाम जप के प्रति उनकी कोई रूचि नहीं होती । यद्यपि ऐसा प्रतीत होता है कि यह भक्त अपने गुरु के अति-निकट हैं और यहाँ तक कि उन्हें उच्च-पद भी मिल जाता है परन्तु उन्हें वह कृपा नहीं मिलती जो एक समर्पित शिष्य को मिलती है ।
१९९५ में भुवनेश्वर में दिए गए एक प्रवचन में गौर गोविन्द महाराज भक्तों को चेतावनी देते हुए बताते हैं कि वास्तव में गुरु का संग पाने के लिए हमें अपने गुप्त प्रयोजन और भक्ति का झूठा प्रदर्शन त्यागकर निष्कपटता से आत्म समर्पण करना चाहिए ।
Hare Krishna pruvuj dsndavt esi tarah Bhagawan ki mahima homko dete rahia hamara jeisa Adham ka antacetadarpanmarjanm sambhav hoga.hk